Toxic Friendship
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- अपरिचित


यह कविता शराब को सिर्फ़ एक पेय नहीं, बल्कि हालात और भावनाओं से जुड़ा प्रतीक मानती है। कवि इसे जवानी, दर्द, हुस्न, और समाज के दोहरे मापदंडों से जोड़ते हुए गहरी बात कहता है। वह बताता है कि शराब बुरी नहीं, बल्कि दुनिया का रवैया और नीयत खराब है। पीने की वजह सिर्फ़ मस्ती नहीं, बल्कि दर्द और हकीकत से पलभर का फ़रार भी है।
यह कविता सिर्फ़ शराब पर नहीं, बल्कि भावनात्मक पीड़ा, समाज की बनावटी सोच और इंसानी जज़्बातों पर आधारित है। यह सिर्फ़ एक नशे की नहीं, बल्कि एक मानसिक और आत्मिक संघर्ष की दास्तान बयां करती है।
मैं हूं इंसा नशें का, जवानी शराब है
तेरी नजर के सामने पानी शराब है
मान ना मान हुस्न की तु इकाई शबाब है
कड़वी नहीं तु पी तो सही, दवाई शराब है
कारण नहीं और कोई बस दर्द हो रहा
फिर कहते हैं मर जाओ पर पीना खराब है
पाखंडी हैं , गंभीर हैं सब, अमृत शराब है
बुराई शराब में नहीं, ज़माना खराब है
हम आम से आवारा हैं, हर रोज नशे में जीते हैं
आंसू को नहीं पीते हैं, बस इसीलिए पीते हैं
सीधा रहा न जाता है, सो लड़खड़ा के जीते हैं
तुम दिखते ही नहीं, आंखे क्या खोलें,
बस इसीलिए हीं पीते हैं
कुछ भी बचा न कहने को, हर बात हो गई
आओ थोड़ी पी लें अब तो रात हो गई
क्यूं कहते हो ज़हर इसे, हम मरे तो नहीं
क्या हक़ है उसे कुछ कहने की, जिसने पीया ही नहीं...
महफिल में पीने आए हैं तो पीजिए मगर
पहले ये पूछ लीजिए, किसकी शराब है ?
और मुझे बुलाने वालों मुझे ये भी बताना
कमरे में कितने लोग है, कितनी शराब है....?