कैदी बिटिया | Woman Empowerment

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कैद थी, और कैद में ही रह गई,
उड़ने के ख़्वाबों को दफ़्न कर गई,
हिम्मत की भी तो... खुद को कहीं खो गई,
वो जो छोटी-छोटी बातों पर
गुस्सा करती थी,
आज खुद से ही नाराज़ हो गई।

कुछ रिश्ते उसके काम के भी नहीं थें,
फिर भी उनके चेहरों पर वो खुशियां संवार गई
खुद से भी लड़ी अक्सर, "उन्हें" बचाने को
और अंदर ही अंदर खुद से खुद को हार गई।

वो सबको
जिताते जिताते सबकुछ वरा गई
"उनके" सामने खुद का एक ना सोचा और
सबके सामने खुद को हरा गई।

कैद थी, और कैद में ही रह गई,
उड़ने के ख्वाबों को दफ्न कर गई
उसने खुद को खुद में ही कैद कर लिया
रोती रही अकेली पर ना सुनने दी सिसकियां
जिसके लिए लड़ती रहती थी,
उसी को भूलकर बस जी रही है।
अब तो खुद से भी उसने समझौता कर लिया है
बस यूंही गमों को पी रही है....

फिर भी वो बुरी थी,
और बुरी ही रह गई।
कैद थी, कैद है
और कैद में ही रह रही
ना कहती है कुछ, न सवाल करती है
बड़ी शिद्दत से सहती जा रही सबकुछ... सच में कमाल करती है!
"उन्हें" जानते हुए भी अपना सब लूटाते जा रही
वो जीना चाहती है, बस जी नहीं पा रही ।

घुट घुट कर जान... लिए जा रहे हैं जिसकी
कल को चूल्हे में झोंक दी जाएगी जिंदगी उसकी
अभी तो गुमसुम रहती है, कल को चुप करा दी जाएगी
अपने सपनों से सबके लिए खाना बनाएगी |

कैद थी, और कैद में ही रह गई,
उड़ने के ख़्वाबों को दफ़्न कर गई,
हिम्मत की भी तो... खुद को कहीं खो गई,
शायद, नन्ही सी बिटिया अब बड़ी हो गई।।

यह कविता एक ऐसी लड़की की कहानी बयां करती है, जो अपने ख्वाबों, इच्छाओं और पहचान को समाज और रिश्तों की ज़ंजीरों में कैद कर चुकी है। वह छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करने वाली चुलबुली लड़की अब खामोश हो चुकी है, खुद से भी नाराज़ है। दूसरों की खुशी के लिए उसने खुद को बार-बार कुर्बान किया, लेकिन बदले में उसे कुछ नहीं मिला—सिर्फ ताने, तिरस्कार और अंतहीन दर्द। उसने सभी को जिताया, पर खुद हमेशा हारती रही। अब वह समझौते की ज़िंदगी जी रही है—बिना आवाज़, बिना सवाल।

अंत में, कविता यह दिखाती है कि कैसे एक मासूम बच्ची धीरे-धीरे बड़ी हो जाती है, और समाज की कठोर सच्चाइयों में खो जाती है।

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